Thursday, June 18, 2020

राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान और मैं !

अचानक राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (जो अब केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय बन चुका है) का पुरातन से पुरातन संस्मरण हो चला, और अन्ततः स्मरणिका 18 वर्ष पूर्व के इन्दौर शहर, धरावरा धाम में हो रहे मानस सम्मेलन में पहुँच गई जहाँ नवोद्घाटित भोपाल परिसर के प्राचार्य प्रो.आजाद मिश्र जी संस्थान का महिमामण्डन कर रहे थे और शा.सं.महा. रामबाग, ओंकारद्विज सं. महा, विद्याधाम, श्री वेणुगोपाल पाठशाला आदि तमाम संस्कृत संस्थाओं के छात्रों को संस्थान के भोपालपरिसर में प्रवेश लेने हेतु आमन्त्रित एवं प्रोत्साहित कर रहे थे | प्रो.आजाद मिश्र जी का धाराप्रवाह संस्कृत सम्भाषण सुनकर हम गदगद हो गये | उस समय हम स्तरीय संस्कृत बोल और समझ लेते थे या यूँ कहूँ कि उस समय मैं निरूद्देश्य तथा भावादिरहित अनुष्टुप का संयोजन कर लिया करता था | हमने निश्चित किया कि अब हम संस्थान के भोपाल परिसर में ही पढेंगे और फिर नितिन शर्मा प्रतिनिधि के रूप में भोपाल भेजा गया, वो कुछ बुकलेट (Admission Form) ले आया | फिर कुछ ऐसा हुआ जो कि उल्लेखनीय नहीं है और हम पाठशाला छोडकर भोपाल नहीं जा सके | और बात आई गई हो गई |

इससे दो वर्ष पूर्व की बात करूँ तो हमारी पाठशाला के हम 11 छात्र अष्टोत्तरशत भागवत पारायण हेतु #कन्याकुमारी के पास #नांगुनेरी गये थे जहाँ हमारे संस्कृत सम्भाषण को सुनकर अन्य पण्डितजन बार बार यही पूछते कि क्या आप संस्कृतभारती से हैं ? तो हमारे अग्राध्यायी भैया लोग बताते कि नहीं हम सब को संस्कृत संभाषण हमारे गुरुजी
डॉसनन्दनकुमारत्रिपाठी जी ने सिखाया है किन्तु मन में एक प्रश्न घर कर गया कि ये संस्कृतभारती क्या है, जानना पड़ेगा और फिर कुछ ही दिनों के पश्चात् हमारी भेंट नीलाभ तिवारी सर से हुई और उन्होंने हमें इसके बारे में विस्तृत रूप से बताया तथा यह भी ज्ञात कराया कि आपके मन्दिर में आने वाले #प्रोमिथिलाप्रसादत्रिपाठी गुरुजी भी इसके वरिष्ठ अधिकारी हैं | और फिर कुछेक कार्यक्रमों में हम लोगों की सहभागिताएँ बढने लगीं |

एक दिन नीलाभ सर से आगे के भविष्य को लेकर बात होने लगी कि शास्त्री के बाद हमें क्या करना चाहिए ? आदि | तब उन्होंने संस्थान से #शिक्षाशास्त्री (B.Ed.) करने का परामर्श और मार्गदर्शन प्रदान किया | हम पाँच लोगों ने पूर्व शिक्षा शास्त्री परीक्षा का फार्म भरा और परीक्षाकेन्द्र मिला टी.टी. नगर भोपाल का एक विद्यालय जिसका नाम याद नहीं | दिन था 21 मई 2005 | परीक्षा समाप्त होते शाम हो गई और अब मुझे जाना था अपने गृहग्राम Dehri on Sone बिहार क्योंकि 23 मई को मेरी दीदी का तिलक था और अब तक मैंने कभी भी अकेले इतनी लम्बी रेलयात्रा नहीं की थी वो भी बिना रिजर्वेशन | फिर भी मैंने शक्ति एकत्रित कर चालू टिकट लिया और चढ गया जनरल बोगी में | सामान के नाम पर छोटी सी अटैची | इतनी भीड़ कि मुझे #इटारसी में उतरना पड़ा और मैं #मुम्बई से आने वाली खाली ट्रेन का इन्तजार करने लगा जब रात के दो बजे तक भी कोई ट्रेन खाली जैसी नहीं मिली तो एक भरी हुई सी ट्रेन में ही चढ गया क्योंकि मुझे किसी भी हालत में 23 तक घर पहुँचना था |

और फिर मैंने टुकड़ी-यात्रा का सहारा लिया इटारसी से #जबलपुर, जबलपुर से #कटनी, कटनी से #इलाहाबाद, ईलाहाबाद से #मुगलसराय, मुगलसराय से #डेहरीऑनसोन और फिर घर 23 मई को लगभग 10 बजे दिन में मैं अपने गाँव शंकरपुर, थाना नासरीगंज जिला #रोहतास (बिहार) पहुँचा |

पूर्वशिक्षाशास्त्री परीक्षा का परिणाम आया Nitesh का चयन हो गया भोपाल परिसर के लिए | चूँकि मेरा सामान्य ज्ञान माशाअल्लाह था अतः मुझे इसका थोड़ा सा पूर्वानुमान था किन्तु कुछ दिनों बाद मेरा और Satyesh का भी नंबर आया किन्तु प्रतीक्षा सूची में, हमें लगा यही प्रवेशार्हता पत्र है सो हम उस पत्र को लेकर सीधे अरेरा कॉलोनी, भोपाल पहुँच गये और प्राचार्य प्रो.आजाद मिश्र गुरुजी को पत्र दिखाकर धाराप्रवाह संस्कृत में बोले कि हमें शिक्षाशास्त्री में प्रवेश चाहिए, अन्यकार्यव्यावृत्ति एवं अनवधानवश उन्होंने उस पर लिख दिया कि प्रवेश दिया जाय, हम उस पत्र को लेकर बाहर आये तो द्वारका जी (कार्यालय कर्मचारी) ने हमें खूब सुनाया और कहा कि भैया पत्र में लिखा यही वाक्य दिल्ली से लिखाकर लाना है | मैं और सत्येश हम दोनों हतोत्साहित हो #दिल्ली चल दिए वहाँ मेरे ताऊ जी के लड़के Chandranshu Mishra Bjp भैया के रूम पर स्नान ध्यान कर पहली बार जनकपुरी, #नईदिल्ली में संस्थान मुख्यालय पहुँचे, तब नहीं जानते थे कि इस #संस्थानमुख्यालय के गेट से जीवन भर का घनिष्ठतम नाता जुड़ जाएगा, खैर कॉउंसिल कक्ष में पहुँचते ही एक महोदया ने मेरे नाम का कन्फर्मेशन लेने के उपरान्त पूछा - कहाँ जाना है भोपाल या #लखनऊ ? मैंने कहा भोपाल | वो बोलीं ठीक है इसका भोपाल लिखिए, मैं बोला मैडम काउंसलिंग कब होगी ? बोली हो तो गई काउंसलिंग, तुम्हें भोपाल जाना है | मैंने मन में सोचा भोपाल से जनरल डिब्बे धक्के खाता हुआ केवल यह सुनने के लिए आया था कि ठीक है आप भोपाल जाईये.... उस समय मैं केवल सोच ही सकता था | खैर हम दोनों को भोपाल परिसर मिला और विभागाध्यक्ष #प्रोपरमेश्वरनारायणशास्त्री सर के पास जाकर हमने प्रवेश लिया |
ईश्वरीय अनुग्रह से इस दौरान कई गुरुजनों एवं मित्रों के सम्पर्क में आने का अवसर प्राप्त हुआ, जिनका आशीष और शुभकामनाएं आज भी सतत रूप से कार्यरत हैं | भोपाल परिसर से 2005-06 में #शिक्षाशास्त्री (B.Ed) हो गई | और अब तक मैं भोपाल परिसर और संस्थान मुख्यालय देख चुका था |

मार्च 2009 में भोपाल परिसर से मेरा चयन "अनौपचारिक संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण वर्ग" के लिए हुआ जो कि #जयपुर परिसर में होने वाला था, अतः मई 2009 में पहली बार जयपुर परिसर जाने का अवसर मिला |


और फिर जयपुर से ऐसा नाता जुड़ा कि प्रशिक्षण के उपरान्त मैंने यहाँ से #MEd. किया तदुपरान्त श्री दिगम्बर जैन स्नातकोत्तर महाविद्यालय में शिक्षणकार्य किया | जयपुर में रहते हुए मुझे M.Ed. Ph.D. तथा UGC NET की सफलता मिली, मेरे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाले कई गुरुजन और मित्रसम्पदा मुझे यहाँ प्राप्त हुए | जयपुर परिसर की याँदें बहुत विस्तृत विशाल और भावविभोर करने वाली हैं, अतः वो फिर कभी....

मई 2010 से जुलाई 2010 तक मैं संस्थान के तीन परिसरों में गया, मई 2010 में भोपाल परिसर के शोधछात्र के रूप में "अनुसन्धानप्रविधिप्रशिक्षण कार्यशाला हेतु राजीव गान्धी परिसर #शृंगेरीकर्नाटक गया |

वो जीवन के 21 दिन अविस्मरणीय थे, कई खट्टी मीठी यादें इससे जुड़ी हैं | फिर संविदाध्यापक (साहित्य) का साक्षात्कार देने जम्मू गया, साक्षात्कार दिया माँ #वैष्णवी (#वैष्णोदेवी) का साक्षात्कार किया |

 फिर संविदाध्यापक (साहित्य) का साक्षात्कार देने #गरली परिसर (हि.प्र.) गया, ज्वाला माता का दर्शन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ | पुनः जयपुर आकर दिगम्बर जैन कॉलेज Join किया, पढाता रहा, और 16 नवंबर 2010 को शाम के लगभग छः बजे मैं और मेरा मित्र डॉ अनूप पाण्डेय जयपुर की थड़ी के पास घूम रहे थे कि तभी जम्मू से साहित्य विभागाध्यक्ष डॉ. Satish Kapoor सर का फोन आया, अपना परिचय देने के उपरान्त उन्होंने कहा कि साक्षात्कार में आपका नाम प्रतीक्षासूची में था, अभी हमारे यहाँ एक पद रिक्त हुआ है क्या आप Join करना चाहेंगे ? मैंने कहा जी सर मैं अवश्य Join करना चाहूँगा किन्तु सर वेतन उतना ही मिलेगा ना, जितने के लिए मैंने साक्षात्कार दिया था ? वे बोले हाँ... तो आप कब आ रहे हैं ? मैंने कहा सर आप जब कहें, वे बोले कल पूजा एक्सप्रेस पकड़िये और परसो Join कर लीजिए "शुभस्य शीघ्रम्" मैंने कहा सर ठीक है, यह चमत्कार ही था कि एक घण्टे पहले मैं जयपुर परिसर में था और प्राचार्य कक्ष के समक्ष प्रो.सुदेश कुमार शर्मा सर ने कहा कि क्या तुम लोग जयपुर में M.Ed. करके जयपुर में ही जमे पड़े हो ... अरे भारत भर में फैल कर अपने गुरुजनों का नाम रौशन करो और तभी समीप में खड़ी प्रो.Bhagwati Sudesh मेडम बोली कि धनंजय चिन्ता नहीं करनी है, तुमको संस्थान में ही लगना है, और अन्ततः 18 नवंबर 2010 को मैंने जम्मू परिसर में संविदाध्यापक (साहित्य) के रूप Joining दे दी |

जम्मू परिसर में मेरा शैक्षणिक विकास जबरदस्त हुआ, कपूर सर की सन्निधि में सब ठीक चल रहा था और पता चला कि अब मुझे K.J. Somaiya परिसर #मुम्बई जाना पड़ेगा, 30 जुलाई की रात में जम्मू से मैंने झेलम एक्सप्रेस पकड़ी और 01 अगस्त की सुबह में #कल्याणस्टेशन उतरा, मित्रवर डॉ. Rakesh Jain ने पहले ही मार्ग तथा आने के साधनों के बारे में विस्तृत रूप से बता दिया था जैसे कल्याण में कितने नंबर प्लेटफार्म से लोकल पकड़नी है, स्लो पकड़नी है आदि... 01 अगस्त को मुम्बई परिसर में Join किया... 05 अगस्त को Friendship Day (Sunday) था... #अमिताभबच्चन जी के भौतिक दर्शन हुए किन्तु उससे पूर्व सिद्धिविनायक मुम्बादेवी आदि का दर्शनलाभ हुआ, 2001 में चैन्नै और रामेश्वरम में जो समुद्र देखा था मुम्बई कि स्थिति उससे भिन्न थी, मुम्बई परिसर का समय मेरे जीवन का अब तक स्वर्णिम समय रहा इसमें कोई संशय नहीं है, इस परिसर की कहानी भी बड़ी लम्बी है और कभी....
नई दिल्ली मुख्यालय में 30 जून 2015 को मेरी Ph.D. की अन्तर्वीक्षा होने वाली थी और पता चला कि मुझे अब श्री सदाशिव परिसर, पुरी (ओडिशा) में अपना शैक्षिक योगदान देना है, अन्तर्वीक्षा समाप्त होने के बाद मैं अपने ताऊजी के लड़के Rakesh भैया के रूम पर गया तो उन्होंने बताया कि मैंने दिल्ली से भुबनेश्वर का तेरा फ्लाइट का टिकट कर दिया है सुबह में पाँच बजे फ्लाइट है, वस्तुतः मैं फ्लाइट से जाने के मूड में नहीं था क्योंकि आज तक मैंने कभी हवाई यात्रा नहीं की थी किन्तु टिकट हो गया है तो जाना ही पडे़गा |
लगभग 07:30 तक भुबनेश्वर और 09:30 तक पुरी पहुँच गया, पुरी की भी अद्भुत और अविस्मरणीय याँदें है, पुरी रहते मैं सितम्बर 2015 में पहली बार लखनऊ परिसर गया "पण्डित प्रताप नारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान" लेने और मार्च 2019 में सपत्नीक गुरुवायूर परिसर (केरल) जाने का अवसर प्राप्त हुआ...... यही था मेरा संस्थान परिसरों की प्रथम यात्रा का वृत्तान्त ..... बहुत से संस्मरणों को लांघ लांघ कर आगे बढ गया हूँ.... अवसर मिलेगा तो उन्हें भी Share करूँगा ..... जय माता दी

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