Sunday, July 5, 2020

तस्मै श्रीगुरवे नमः

गुरु के बारे में कहा जाता है "गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः | गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः || ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु निर्माता होता है, और ये निर्मिति उपादान कारण या निमित्त कारण से नहीं अपितु सहज प्रवृत्ति से होती है | गुरु में वह गुरुता Neutral होती है | आज जब विद्यालय व्यवसाय का केन्द्र या धन खसोटने के केन्द्र बन गये हैं, तो वैसी गुरुता कम ही दिखाई पड़ती है | गुरु के मन में एक अजीब तरह का उतावलापन होता है कि मैं अपने शिष्य को क्या क्या दे दूँ |

ब्रह्मा के समान गुरु, सुनिश्चित वृत्त में विद्यमान मिट्टी के पिण्ड को थपथपाता हुआ एक अनुकूल आकार/Shape देता है, अन्तःवृत्त और बाह्यवृत्त दोनों को | फिर उस जातित्व आकार को तराशता है, उनकी बारीकियों पर काम करता है, उसके हर एक पक्ष को Different Angles से देखता हुआ, उसे परिदृश्य (सभी ओर से दर्शनीय) बनाता है | ऐसा नहीं है कि वह पहले उच्चारण-आचारादि बाह्यवृत्त का समायोजन कर लेने के पश्चात् सहृदयतादि अन्तःशीलों का परिवर्धन करता है अपितु गुरु तो कुम्भकार के समान अन्तःबाह्य उपचारों को समान रूप से प्रतिपादित करता है | निष्कर्षतः "संस्कारसम्पन्न शक्तिरूप बीज जब प्रबल श्रद्धारूप गर्भस्थिति को प्राप्त करता है और शरीरी गुरु के वात्सल्यरस से पुनःपुनः परिपुष्ट होता है, तब जाकर कहीं शिष्यरूपी शिशु विद्यालोक में जन्म लेता है |" शायद इसीलिए गुरु को पिता की संज्ञा दी गई है | 

गुरु को विष्णु इसलिए कहा जाता है क्योंकि गुरु रक्षक होता है उस विद्यापुञ्ज का | जिस तरह शरीर की रक्षा ही कारण है शरीरी (आत्मा) की रक्षा हेतु, ठीक उसी तरह शास्त्रादि स्थूलता ही उस पराविद्या के प्रति कारण हैं और गुरु शास्त्रादि का संरक्षण कराता हुआ, आत्मतत्त्व की रक्षा करता है |

संहारकारक महेश्वरस्वरूप गुरु उन तमाम अज्ञानात्मक अंधकारों को वैसे ही पूर्णतः हर लेता है दूर कर देता है जैसे परम प्रकाश, तमः का बोध ही नहीं होने देता | सूक्ष्मतया देखा जाय तो आब्रह्माण्ड में सर्वत्र अज्ञान रूपी अन्धकार विद्यमान है और उस अज्ञानान्धकार का एकमात्र समाधान प्रकाश है, ज्ञान है, सत्यबोध है | फिर भी लोग अज्ञान, मोह, भय, छल, छद्म आदि से युक्त किन्तु प्रकाश/विद्या से रहित, वस्तु/पदार्थों के संदर्शन हेतु छटपटाते रहते हैं | आज शिक्षा क्षेत्र में व्यवसायिकता के आधिक्य से शिक्षकों में गुरुत्व तथा छात्रों में शिष्यत्व कम ही देखने को मिल रहा है | शायद इसका कारण है शिक्षकों में "यस्यागमः केवलजीविकायै" और छात्रों में Teacher को Use & Throw रूपी एक Object समझना है | तथापि आप सभी को गुरुपूर्णिमा की अनन्त शुभकामनाएँ .....

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