दक्षिणा का महत्व
ब्राह्मणों की दक्षिणा, हवन की पूर्णाहूति करने के एक मुहूर्त (24 मिनट) के अन्दर दे देनी चाहिये , अन्यथा मुहूर्त (24 मिनट) बीतने पर उस दक्षिणा की देयता 100 गुना बढ जाती है इसी तरह तीन रात बीतने पर एक हजार गुना देयता, सप्ताह बीतने के बाद दो हजार गुना देयता, महीना बीतने के बाद एक लाख गुना देयता तथा संवत्सर बीतने पर तीन करोड गुना दक्षिणा यजमान को देनी होती है । यदि यजमान संकल्पादि से वरण किये हुए ब्राह्मण को दक्षिणा नहीं दे तो उसके बाद उस यजमान का कर्म निष्फल हो जाता है तथा उसे ब्रह्महत्या का महापाप लगता है क्योंकि शास्त्रों लिखा गया है "वृत्तिच्छेदो हि तद्वध:" अर्थात् किसी की वृत्ति (नौकरी/ मेहनताना/ दक्षिणा / पारिश्रमिक/) को मारना उसके वध/ हत्या के समान होता है | अतः उसके हाथ से किये जाने वाला हव्य (हवन) - कव्य (बलिदान) देवता और उसके पितर कभी प्राप्त नहीं करते हैं । इसलिए ब्राह्मणों की दक्षिणा जितनी जल्दी हो देनी चाहिये | शास्त्रों में जिन पांच महापापों का उल्लेख किया गया है वे हैं -
ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गुर्वङ्गनागमः |
महान्ति पातकान्याहुः संसर्गश्चापि तैः सह ||
इसमें जो पांचवां महापाप है वह पूर्व उल्लिखित चार महापापों में सहयोग करने वाले, उनके लिए प्रेरित करने वाले, उनका समर्थन करने वाले, उन पापों में साथ देनें वाले को भी समान रूप से प्राप्त होता है |
शास्त्रों में इसका सविस्तार वर्णन मिलता है -
मुहूर्ते समतीते तु, भवेच्छतगुणा च सा । त्रिरात्रे तद्दशगुणा, सप्ताहे द्विगुणा मता ।।
मासे लक्षगुणा प्रोक्ता, ब्राह्मणानां च वर्धते । संवत्सर-व्यतीते तु , सा त्रिकोटिगुणा भवेत् ।।
कर्म तद्यजमानानां, सर्वञ्च निष्फलं भवेत् । सब्रह्म-स्वापहारी च, न कर्मार्हो शुचिर्नर:।।
इसलिए चाणक्य ने कहा "नास्ति यज्ञसमो रिपु:" अर्थात् यज्ञादि कर्म शास्त्र विधि से सम्पन्न हो तब तो महान् लाभ को देने वाला है अन्यथा यज्ञ से बड़ा कोई शत्रु नहीं है ।
गीता में स्वयं भगवान् ने कहा
विधिहीनमसृष्टान्नं, मन्त्रहीनमदक्षिणम् । श्रद्धाविरहितं यज्ञं , तामसं परिचक्षते ।। श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 17 श्लोक 13
अर्थात् शास्त्रविधि से हीन, अन्नदान से रहित, बिना मन्त्रों के, बिना दक्षिणा के और बिना श्रद्धा के किए जाने वाले यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं ৷৷17.13॥
Means that sacrifice performed in defiance of scriptural injunctions, in which no spiritual food is distributed, no hymns are chanted and no remunerations are made to the priests, and which is faithless-that sacrifice is of the nature of ignorance.
यह बड़ा विचारणीय विषय है कि लोग अपने शादी विवाह आदि उत्सव महोत्सवों में मनोरंजन / न्यौछावर के नाम पर लाखों रुपये लुटा देतें हैं किन्तु आधुनिकता की दौड़ के विपरीत वेदों शास्त्रों का अध्ययन करने वाले उस तपस्वी ब्राह्मण को दक्षिणा देते समय Bargaining करने लगते हैं अथवा दक्षिणा देने में विलम्ब करते हैं अथवा कम दक्षिणा देते हैं और तो और कुछ लोग उन तपस्वी ब्राह्मणों की दक्षिणा को पचा जाते हैं, तथा वही लोग किसी सभा में भाषण करते हुए आपको दिखाई दे जाते हैं कि आज समाज में कितनी विकृति आ गई है | वस्तुत: उन लोगों को पता ही नहीं होता कि यज्ञानुष्ठान करने वाले ब्राह्मणों के लिए शास्त्रों में क्या लिखा है | शास्त्रों में यज्ञानुष्ठान करने वाले ब्राह्मणों को "देवता" की उपाधि प्रदान की गई है -
देवाधीनं जगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवता: || ते मन्त्रा: ब्राह्मणाधीना: तस्मात् ब्राह्मण-देवता ||
अर्थात् यह सारा संसार देवताओं के अधीन है, सभी देवता मन्त्रों के अधीन है और वे सारे मन्त्र ह्रस्व-दीर्घ-स्वरितादि स्वरों का ज्ञान रखने वाले ब्राह्मणों के अधीन होता है, अतः ब्राह्मण को देवता कहा जाता है |
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